Monday, December 25, 2017

मन के हारे हार है मन के जीते जीत

२६ दिसम्बर २०१७ 
एक तरफ पदार्थ है और दूसरी तरफ चेतना दोनों को जोड़ता है मन. मन कभी पदार्थ की तरह जड़ बन जाता है तो कभी चेतना से एक होकर चेतन. मन को यह सुविधा है कि इससे नाता जोड़े या उससे. जड़ होने में श्रम नहीं लगता पर उसका खामियाजा मन को ही भुगतना पड़ता है, वह सीमाओं में कैद हो जाता है. जड़ का ही आकार ग्रहण कर लेता है. चेतना का कोई रूप नहीं, वह एक शक्ति है, सो चेतना के साथ जुड़ने पर मन भी अनंत हो जाता है. सुख-दुःख के पार, तीनों गुणों के पार हुआ मन सहज ही आनंद का अनुभव करता है. चेतना का सहज स्वभाव है शांति, प्रेम और विश्वास, ऐसे में मन भी स्वयं को निर्मल और सरल अनुभव करता है.

2 comments:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन स्वतंत्रता सेनानी - ऊधम सिंह और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  2. बहुत बहुत आभार हर्षवर्धन जी !

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