Tuesday, November 14, 2017

मिला सदा है सुख अंतर का

१४ नवम्बर २०१७ 
शास्त्रों में कहा गया है, वैराग्य में कौन सा सुख नहीं है. हमें वस्तुओं के ग्रहण में जितना सुख मिलता है, उतना ही दुःख एक न एक दिन उनका त्याग करने अथवा होने पर मिलेगा. यदि त्याग भाव से उन्हें ग्रहण किया जाये अर्थात उनकी कामना न करके सहज भाव से जो जीवन के लिए आवश्यक है उतना ही ग्रहण किया जाये तो भविष्य में मिलने वाले दुःख से बचा जा सकता है. आत्मा सहज ही सुखस्वरूप है, मन में कामना का जन्म हुआ उसके पूर्व तक मन शांत था. कामना की पूर्ति के लिए श्रम किया, भविष्य में इसके द्वारा जो फल मिलेगा उसकी स्मृति नहीं रही, और अल्पकाल का सुख पाने के बाद मन फिर शांत हो गया, अर्थात पूर्ववत स्थिति प्राप्त हो गयी. किन्तु जो संस्कार मन पर पड़ गया वह भविष्य में फिर कामना उत्पन्न करेगा और एक चक्र में ही जीवन घूमता रहेगा.

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