Friday, August 4, 2017

निज श्रम से ही भाग्य बनेगा

५ अगस्त २०१७ 
योग शब्द का एक अर्थ है जुड़ना अथवा जोड़ना. पहले देह को मन से फिर मन को आत्मा से और अंत में परमात्मा से जोड़ना है. आत्मा बीज रूप में सबके भीतर है पर योग द्वारा ही उस तक पहुंचा जा सकता है. इसके लिए मन की धरती पर उस बीज को बोकर साधना के जल से सींचा जाता है. अपनी-अपनी रूचि के अनुसार कोई भक्ति से, कोई ज्ञान से तथा कोई निष्काम कर्म से इस पौधे को बड़ा करता है. तीसरे यम ‘अस्तेय’ का पालन सभी के लिए आवश्यक है. ‘अस्तेय’ का शाब्दिक अर्थ है चोरी न करना. चोरी शब्द का यहाँ बहुत व्यापक अर्थ है, किसी की अनुपस्थिति में उसकी वस्तु का उपयोग भी चोरी ही कहा जायेगा. कम श्रम के बदले अधिक धन की लालसा, कर्तव्यों से पीछे हटना, व्यापार में ज्यादा मुनाफा कमाना, दूसरों के विचारों की चोरी भी स्तेय में आएगा. यदि मन में कहीं भी चोरी का संस्कार है, तो वह अन्यों के प्रति संदेह भी जगाता है. साधक को मन की निर्मलता के लिए किसी भी रूप में बिना अर्जित की हुई वस्तु का लोभ नहीं रखना चाहिए. 

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