२१ अगस्त २०१७
प्रत्येक आत्मा में ज्ञान पाने की सहज कामना होती है, एक बच्चा भी जन्मते ही अपने
आस-पास के वातावरण से परिचित होना चाहता है. ज्ञान इन्द्रियों तथा मन के रूप में
हमें जानने के सुंदर साधन प्राप्त हुए हैं, जिनके माध्यम से हम जगत को जानते हैं.
जानने के इस क्रम में हम जगत के बारे में कई धारणाएं अथवा मान्यताएं बना लेते हैं,
जिनका कोई प्रमाण हमारे पास नहीं होता, जिसके कारण हमें कष्ट उठाना पड़ता है. यदि
हमारे पास अपनी धारणा के पक्ष अथवा विपक्ष में कोई प्रमाण नहीं है, तो हम उस बात
को न तो स्वीकार करें न ही अस्वीकार. उस स्थिति में हम तटस्थ रहकर ही स्वयं की
रक्षा कर सकते हैं. इस जाननेवाले को जानने के लिए हमें इन साधनों को शुद्ध करने
की आवश्यकता है, मन जितना शुद्ध होगा उतना
ही एकाग्र होगा. एकाग्र मन में जानने वाला यानि आत्मा अपने प्रतिबिम्ब को उसी तरह देख
लेता है, जैसे शान्त झील में हम उसकी तलहटी को देख लेते हैं.
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन उस्ताद बिस्मिला खां और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार हर्षवर्धन जी !
Deleteमन की शुद्धता एकाग्रता की शुरुआत है ...
ReplyDeleteसत्य दर्शन ...