Thursday, June 15, 2017

अति सर्वत्र वर्जयेत्


मन को नकारात्मकता से मुक्त करने लिए पहला कदम है उचित श्रम और दूसरा एकाग्रता. यदि समय अधिक है और करने के लिए काम कम है तो जाहिर है मन व्यर्थ की चहलकदमी करेगा ही. जितनी समय मन किसी काम में एकाग्र रहता है, कोई अनचाहा भाव या विचार उसमें नहीं आता. यदि काम सीमा से अधिक है तो मन थका रहेगा और सकारात्मक विचारों को ग्रहण नहीं कर पायेगा. जीवन में एक अनुशासन साधना के पथ पर चलने के लिए पहली सीढ़ी है. एकाग्र मन अपनी ऊर्जा को बचाता है और यही ऊर्जा ध्यान में प्रवेश करने के लिए उपयोगी होती है. ध्यान हमें अपने भीतर की गहराई में ले जाता है जहाँ जाकर हम सहज ही प्रसन्नता व शांति का अनुभव कर सकते हैं.

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