Thursday, April 20, 2017

मुक्त हुआ मन कब डोले

२१ अप्रैल २०१७ 
शास्त्रों के अनुसार अनंत जन्मों के हमारे संचित कर्मों में से थोड़ा सा प्रारब्ध कर्म लेकर हम इस दुनिया में आते हैं. जिनके अनुसार जन्म, आयु, सुख-दुःख आदि हमें मिलते हैं. जब तक यह ज्ञान नहीं होता कि मनसा, वाचा, कर्मणा हर कर्म का फल मिलने ही वाला है, हम नये-नये कर्म बांधते चले जाते हैं, जिनका हिसाब चुकाना ही होगा. एक बार यह ज्ञान हो जाने के बाद हमें केवल पुराने कर्मों का हिसाब पूरा करना है. स्वयं को सदा मुक्त अनुभव करने के लिए कर्मों के जाल से छूटना ही एक मात्र उपाय है. जीवन में कैसी भी परिस्थिति आये मन को समता भाव में रहकर उससे पार हो जाना ही कर्मों से छूटना है, अन्यथा भविष्य के लिए एक नया बीज बो दिया जायेगा. जिस किसी व्यक्ति, वस्तु अथवा परिस्थिति के साथ राग अथवा द्वेष का भाव मन में रहता है, उसका सही मूल्यांकन हम कभी नहीं कर सकते. राग अथवा द्वेष बुद्धि को धूमिल कर देते हैं और हम अनजाने ही नई रस्सियों में जकड़े जाते हैं. 

2 comments:

  1. अनिता जी ! आप सही कहती हैं, हमें राग - द्वेष से बचना ही होगा, तभी संभावनाओं के द्वार खुलेंगे ।

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  2. स्वागत व आभार शकुंतला जी !

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