Sunday, April 16, 2017

समता की जब करें साधना

१७ अप्रैल २०१७ 
बीज एक है पर उसी से तना, डालियाँ, पत्ते, कलियाँ, फल व फूल प्रकट होते हैं, ऐसे ही जगत में विविधता है पर एक ही ऊर्जा देह और मन के माध्यम से प्रकट हो रही है. बीज यदि संक्रमित हो तो पौधा भी रोगग्रस्त होगा, अथवा तो पौधे को उचित जलवायु न मिले तो भी वह स्वस्थ नहीं होगा. इसी तरह ऊर्जा यदि नकारात्मक हुई अथवा उसको प्रकट होने का उचित माध्यम नहीं मिला तो जीवन स्वस्थ नहीं रह सकता. ऊर्जा को ऊपर से नीचे बहने के लिए कोई प्रयास नहीं करना पड़ता, नीचे गिरना सहज ही होता है पर ऊपर ऊठने के लिए प्रयास चाहिए, इसे ही हमारे शास्त्रों में पुरुषार्थ कहा गया है. मन यदि समता में रहता है तो ऊर्जा सहज ही ऊर्ध्वगामी होती है. सजगता ही इसका साधन है, सजगता बनी रहे इसके लिए ही आसन, प्राणायाम, ध्यान आदि का विधान है. 

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