Sunday, March 5, 2017

योग सधेगा जब जीवन में

६ मार्च २०१७ 
योग के साधक का अंतिम लक्ष्य होता है सदा के लिए भीतर समाधान को प्राप्त होना, अर्थात बाहर की परिस्थिति कैसी भी हो मन के भीतर समता बनी रहे, समता ही नहीं समरसता भी.  इस लक्ष्य को पाने के लिए वह अपनी रूचि के अनुसार एक पथ का निर्धारण करता है. यदि उसमें तर्कबुद्धि है तो ज्ञानयोग, भावनाबुद्धि है तो भक्ति योग और दोनों का सम्मिलन तो कर्मयोग के द्वारा वह अपने पथ पर आगे बढ़ता है. सत्य के प्रति निष्ठा और श्रद्धा तीनों के लिए प्रथम आवश्यकता है. योग का साधक वही तो हो सकता है जिसके भीतर स्वयं के पार जाने की आकांक्षा जगी हो, जो स्वयं से ही संतुष्ट नहीं हो गया है, जो जानता है कि उसके पास उन सवालों के जवाब नहीं है जो इस जगत को देखकर उसके मन में उठते हैं. जो अपने मन में निरंतर उठने-गिरने वाली लहरों के जाल से स्वयं को बचा नहीं सकता. वह देखता है जो व्यक्ति, वस्तु, परिस्थिति आज सुखद है वही कल दुःख का कारण हो जाती है. जीवन को गहराई से देखने वाला हर व्यक्ति एक न एक दिन अपने पार जाने की कला सीखना चाहेगा. निज बुद्धि के पार उस विवेक को पा लेगा जो हर कठिनाई को एक अवसर बना देता है.

2 comments:

  1. योग का साधक वही तो हो सकता है जिसके भीतर स्वयं के पार जाने की आकांक्षा जगी हो, जो स्वयं से ही संतुष्ट नहीं हो गया है, जो जानता है कि उसके पास उन सवालों के जवाब नहीं है जो इस जगत को देखकर उसके मन में उठते हैं.

    अति सुन्दर।

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  2. स्वागत व आभार राहुल जी !

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