Sunday, December 11, 2016

स्वयं ही अपना भाग्य विधाता

१२ दिसम्बर २९०१६ 
हम सब आनंद चाहते हैं, स्वास्थ्य चाहते हैं और संबंधों में स्थायित्व चाहते हैं, किन्तु इस बात को भूल जाते हैं कि ये सब हमें स्वयं ही गढ़ने हैं और इन सबका स्रोत भीतर है बाहर नहीं। यदि मन के भीतर किसी भी कारण से एक भी दुःख का बीज बोया तो एक न एक दिन वह अंकुरित होगा, न केवल अंकुरित वह पल्लवित भी होगा जो भविष्य में दुःख का कारण बनेगा, शारीरिक स्वास्थ्य के साथ भावनात्मक असुरक्षा का कारण भी होगा। किसी भी वस्तु, व्यक्ति अथवा परिस्थिति के प्रति कोई भी नकारात्मक भाव भी उसके साथ संबंधों को मधुर नहीं रहने देगा। 

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