Tuesday, May 5, 2015

होना ही जब शुभ हो जाये

जनवरी २००९ 
भगवान बुद्ध कहते हैं वह कार्य करने के लायक नहीं जिसे करके पीछे पछताना पड़े. हमारा कृत्य हमारे होने के विपरीत भी हो सकता है. हमारे होने का ढंग शुभ हो न कि हमारे कर्म शुभ हों. हम जो भीतर हैं उससे डरते हैं इसलिए बाहर विपरीत करते हैं. भीतर पतझड़ हो तो हम बाहर उधार वसंत की अफवाह फैला देते हैं. अपने कृत्यों से हम हमारे होने पर पर्दा डालते हैं. अगर दुर्जन शुभ कर्म भी करे तो उसका परिणाम अच्छा नहीं हो सकता ! सज्जन अगर शुभ करता है तो उसके भीतर आनंद का अनुभव होता है. उससे यदि अशुभ भी हो जाये तो वह उसके भीतर की समरसता को दिखाने के लिए ही है न कि कुछ छिपाने के लिए.

3 comments:

  1. बिलकुल सच कहा है कि हमारे होने का ढंग शुभ हो न कि हमारे कर्म शुभ हों. बहुत सार्थक चिंतन...

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  2. बुद्धम् शरणम् गच्छामि ।"
    सुन्दर - बोधगम्य - रचना ।

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  3. कैलाश जी व शकुंतला जी, स्वागत व आभार !

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