Friday, May 22, 2015

अचल हुआ जो अपने भीतर

मार्च २००९ 
संसार की गति का कारण वह परमात्मा है जो गति नहीं करता. जब तक हमारी कोई मांग है तब तक हम अपने भीतर की स्थिरता को अनुभव नहीं कर सकते. संसार हमारे भीतर का प्रतिबिंब है. हमारे भीतर जो आकांक्षाओं का संसार है वही हमें अकम्प का भान नहीं होने देता. यह कामना यदि समझ में आ जाये तो पता चले कि वहाँ कुछ है ही नहीं ! भीतर टटोलें तो पता चलता है, जो भी है परमात्मा का है. जो आदि पूर्ण, मध्य पूर्ण तथा अंत पूर्ण है वह परमात्मा है. उसे जुड़कर ही हम पूर्ण हो जाते हैं. 

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