Tuesday, May 12, 2015

होश भरा हो जीवन का पथ

फरवरी २००९ 
जिसकी प्रज्ञा पूर्ण हो चुकी है, जिसका आना-जाना मिट गया है. वह जो मुक्त है, वह जो शून्य है, वह ही ब्राह्मण है. सभी लोग शूद्र की तरह पैदा होते हैं, शरीर के तादात्म्य होने के कारण ही पैदा होते हैं, ब्राह्मणत्व उपलब्ध करना पड़ता है. हमारी वासना जैसी होती है, वैसा ही जन्म हमें मिलता है. स्मरणपूर्वक कोई जीये, होशपूर्वक कोई जीये तो वह संसार में पुनः नहीं लौटता. इंच भर जीना हजार मीलों तक सोचने से बेहतर है. जागो और जीओ, यही बुद्ध पुरुष कहते हैं.  

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