Friday, March 27, 2015

देने में ही वह मिलता है

अगस्त २००८ 
हम जिनसे प्रेम करते हैं, प्रेम करने का दावा करते हैं, उनसे शिकायत नहीं होनी चाहिए, अन्यथा वह दावा ही झूठा है. प्रेम में न कोई शिकायत है न उलाहना, न कोई चाह. वह तो सिर्फ देने का नाम है. प्रेम असीम है सो इसकी तो कोई चिंता ही न करे कि यदि सभी को प्रेम बांटते रहे तो हमारे पास कम हो जायेगा और यदि बदले में हमें कोई प्रेम न दे तो हम खाली हो जायेंगे. जब हम प्रेम देंगे किसी को तो वह अपने आप पुनः भर जायेगा. परमात्मा ही तो प्रेम है, वही तो ज्ञान है, वही तो शक्ति है, वही तो सुख है, वही तो पावनता है तो जब इनमें से किसी का भी प्रयोग करते हैं तत्क्षण वह जगह भर जाती है ! 

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