Monday, February 2, 2015

आँख जगे तो प्रीत लगे

जनवरी २००८ 
हमारे जीवन का हर पल भय और शंका से रहित हो, तृप्ति भरा हो, आनंदमय हो, इसके लिए जरूरी है कि हम धर्म का आश्रय लें. ज्ञान पाकर ही ऐसा सम्भव है. ज्ञान की प्राप्ति कैसे हो, इसका जवाब हरेक को खुद ही खोजना होगा, सत्य का आचरण हो तो ज्ञान अपने आप प्रकट होने लगता है. ज्ञान का अंत भक्ति में होता है. भक्ति का प्राकट्य जीवन में हो जाये तो जगत से कुछ प्रयोजन कहाँ रह जाता है. भक्ति का आरम्भ होता है शुभ के प्रति लगाव से, सबके प्रति मंगल की कामना से,, सत्य की राह पर चलने की भीतरी आकांक्षा से. जब हम स्वयं की नजरों में ऊपर उठते हैं तभी भीतर वाला परमात्मा हमें स्नेह करता सा लगता है. उसकी कृपा तो अनवरत बरस ही रही है. परमात्मा के प्रति श्रद्धा भाव उसके प्रति हमारी आँखें खोल देता है.

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