Sunday, November 30, 2014

नील गगन के पार चलें अब

जून २००७ 
जैसे ईश्वर सभी के हृदयों में निवास करता है वैसे ही प्रत्येक के अंतर में विश्वास भी होता है और संदेह भी. विश्वास बढ़ता रहे तो व्यक्ति भक्त हो जाता है, संदेह बढ़ता रहे तो जिज्ञासु हो जाता है. लेकिन जहाँ विश्वास न बढ़े तो अंधविश्वासी और संदेह न बढ़े तो अज्ञानी रह जाता है. भक्त और जिज्ञासु एक दिन स्वरूप में ही पहुंच जाते हैं. जब अपनी खबर मिलने लगती है तो परिवर्तन शुरू होने लगता है. भक्ति और ज्ञान दो पंख हैं जिनसे हम अनंत आकाश में उड़ सकते हैं. भक्ति जीवन का पंख है और ज्ञान मृत्यु का. मानव रूपी पक्षी को यदि नील गगन में उड़ान भरनी है तो जीवन के साथ मृत्यु का भी वरण करना होगा. दिन उजाला है तो मृत्यु रात्रि है, दिन के साथ रात न हो तो जीना कठिन हो जाये.

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