Friday, September 26, 2014

हाथ बढ़ाकर ले लें उसको

मार्च २००७ 
सन्त कहते हैं, हमें क्रियाशीलता में मौन ढूँढना है और मौन में क्रिया ! हमें निर्दोषता में बुद्धि की पराकाष्ठता तक पहुंचना है और बुद्धि को भोलेपन में बदलना है. हम सहज हों पर भीतर ज्ञान से भरे हों. ज्ञान कहीं अहंकार से न भर दे. ऐसा ज्ञान जो हमें सहज बनाता है, जो बताता है कि ऐसा बहुत कुछ है जो हम नहीं जानते, बल्कि हम कुछ भी नहीं जानते, ऐसा ज्ञान हमें मुक्त कर देता है. ऐसा ज्ञान जो हमारी बेहोशी को तोड़ दे, हमारी बेहोशी जाने कितनी गहरी है पर जैसे एक दिया हजारों साल के अंधकार को पल भर में दूर कर देता है ऐसे ही गुरु के ज्ञान का दीया अपने आलोक से हमें प्रकाशित करता है. वे कहते हैं परमात्मा का प्रेम हमें सहज ही प्राप्त है. हाथ बढ़ाकर बस उसे स्वीकारें, कोई पदार्थ या क्रिया उसे हमें नहीं दिला सकती. वह अनमोल प्रेम तो बस गुरु कृपा से ही मिलता है. उनकी चेतना शुद्ध हो चुकी है, वह परमात्मा से जुड़े हैं और बाँट रहे हैं.. दिनरात.. प्रेम का प्रसाद !

2 comments:

  1. बढ़िया प्रस्तुति

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  2. स्वागत व आभार वीरू भाई !

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