Friday, September 19, 2014

बना साक्षी सुख-दुःख का जो

मार्च २००७ 
जब गुरू जीवन में आते हैं तो जीवन को एक सही मार्ग मिलता है. हम साक्षी भाव को प्राप्त होते हैं. देह नित नाश की ओर जा रही है. हम स्वयं मरने वाले नहीं है, जड़ प्रकृति को अपना मान कर ही हम उपाधियों को प्राप्त होते हैं. सुखी-दुखी होने पर यह देखना चाहिए कि सुखी-दुखी कौन हो रहा है ? हम बेहोशी में स्वयं को ही सुखी-दुखी मान लेते हैं. साक्षी भाव में आते ही हम स्वयं को मुक्त अनुभव करते हैं. जब भीतर का वातावरण शांत हो, प्रेमपूर्ण हो, आनन्दपूर्ण हो और संतुष्टि से भरा हो तो मानना चाहिए कि साक्षी भाव जग रहा है. पूर्ण सजग रहकर इसे बनाये रखना है तथा मन, बुद्धि आदि में कोई हलचल हो भी तो उसे देखने मात्र से वह नष्ट हो जाती है. 

4 comments:

  1. सार्थक सुंदर हितोपदेश !!

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  2. ये जो साक्षी महाराजा हैं जो सबको इलुमिनेट कर रहें हैं ये ही चेतना है। जो न दृश्य है न दृष्टा न देखने की प्रक्रिया बल्कि इन सबको आलोकित करता है वाही आत्मा है। उसे न सुख है न दुःख बस वह अपने आपको शरीर मन बुद्धि अहंकार न माने। बढ़िया पोस्ट।

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  3. अनुपमा जी, वीरू भाई व उपासना जी, आप सभी का स्वागत व आभार !

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