Tuesday, June 17, 2014

लघुता में है छिपा महान

अप्रैल २००६ 
अस्तित्व सूक्ष्म है, उससे परिचय हो जाये तो हम सूक्ष्मतर आत्मा के स्वरूप में रहने लगते हैं, तब हम लघुत्तम पद में आने लगते हैं. क्रिया से अहंकार होता है, पर यह ज्ञान क्रिया से नहीं मिलता, ज्ञान से ही मिलता है. कर्म हमें पहचान देता है, पर वह पहचान अहंकार जनित होने के कारण सुख-दुःख से प्रभावित होती रहती है. ज्ञान से मिली स्वयं की पहचान स्वभाव जनित है अतः कभी बदलती नहीं, यह हमें जगत से तोडती नहीं, विशिष्ट नहीं बनाती वरन सारी दुनिया तब अपनी हो जाती है. कोई विरोध नहीं रहता. छोटा ‘मैं’ एक विशाल ‘मैं’ में बदल जाता है जो पूर्ण है. 

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