Thursday, March 6, 2014

सदा सजग हो करें साधना

सितम्बर २००५ 
भाग्य क्या है ? जो कर्म हम पहले कर चुके हैं उनका फल ही भाग्य के रूप में हमारे सामने आता है. अभी जो कर्म हम कर रहे हैं वही भविष्य में हमारे सामने आएंगे. प्रारब्ध में जो है वह तो हमें स्वीकारना होगा पर हम इस क्षण से सजग हो जाएँ कि नये कर्मों की फसल नहीं बोयेंगे. सर्वप्रथम तो स्वयं को देह मानने की भूल से मुक्त होना है, मन व बुद्धि के द्वार से और भीतर जाना है, स्वयं में स्थित होकर किया गया कर्म हमें बांधता नहीं है. आत्मा की अनुभूति हो जाने के बाद इस जगत से इतना ही प्रयोजन रह जाता है जितना भूख मिटने के बाद भोजन से. तब निज सुख के लिए करने जैसा कोई काम रह ही कहाँ जाता है. तब तो सहज ही कर्त्तव्य पालन होता है तथा देह को टिकाये रखने के लिए आवश्यक कर्म होते हैं. ये दोनों ही बाँधने वाले नहीं हैं. मानव की देह लेकर आना हुआ तो एक उद्देश्य था स्वयं की अनन्तता का अनुभव करना, इस उद्देश्य को पाने का साधन है देह, जगत भी साधन है. इन साधनों का उपयोग करके जिसने अपने आप को जान लिया, अपने शुद्ध, बुद्ध, मुक्त शाश्वत स्वरूप को देखकर जिसे लगा कि यही तो वह है, वही तो यह है...भीतर बाहर एक ही चेतना के दर्शन वह करता है.  


3 comments:

  1. आत्मा की अनुभूति हो जाने के बाद इस जगत से इतना ही प्रयोजन रह जाता है जितना भूख मिटने के बाद भोजन से. तब निज सुख के लिए करने जैसा कोई काम रह ही कहाँ जाता है....

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  2. आत्मा को तृप्त कराती पोस्ट

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  3. सुन्दर सार्थक विदेह होना और बस

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