Tuesday, January 7, 2014

तू ही सागर है तू ही किनारा


भगवद कथा हमें अपने स्वरूप में स्थित करने के लिए उपचार है. हमने जो अपने आप को बंधन में पड़ा हुआ मान लिया है, उससे छुड़ाने के लिए औषधि है. हरि ने अपने को अति सुलभ बना कर छिपा लिया है, उस हरि का परिचय कराने कथा आती है. हम जब पाठ करते हैं तो कई अर्थ छिपे रह जाते हैं, किसी सन्त द्वारा कही गयी कथा का श्रवण करने से भीतर जागृति होती है, अहं पिघल कर बह जाता है, सभी कुछ भीग जाता है, हृदय द्रवित हो जाता है. वह हरि प्रेमस्वरूप है, उसके प्रेम की आंच हमारे अंतर को गला देती है, किन्तु भीतर एक शीतलता का अहसास होता है. यदि ऐसा न हो तो हमारा सुनना व्यर्थ ही है. उसे हमारी हालत का पता है, वह हमारे मन की दशा से परिचित है, वह स्वयं तो मन, बुद्धि से परे है पर उससे कुछ छिपा नहीं है. वह अकर्ता भी है और कर्ता भी, वह सब कुछ है और कुछ भी नहीं. वह बुद्धि की समझ में आने वाला नहीं है, वह अद्भुत है लेकिन प्रेम की भाषा वह पढ़ लेता है. हम जिस क्षण उसके साथ होते हैं प्रेम का अनुभव करते हैं अथवा जिस क्षण प्रेम में होते हैं हम उसी के साथ होते हैं. वह ही एक मात्र जानने योग्य है, उसी को अनुभव करना है. सारी साधना का हेतु वही है, वह आनंद है, रस है, ज्ञान है, शांति है, प्रेम है और शक्ति भी वही है. इस सारे विश्व को उसने एक शक्ति से जोड़ा है, वही वह है. 

3 comments:

  1. भागवत पुराण को तो भगवान् ही माना जाता है। पूजा की जाती है श्रीमद भागवत महा पुराण की। सुन्दर प्रस्तुति संत ईश्वर की और जाने वाला मार्ग बतलाते हैं जो कभी नष्ट नहीं होता है।

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  2. स्वागत व आभार वीरू भाई !

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