Sunday, January 5, 2014

तेरा तुझको अर्पण

जून २००५ 
ईश्वर प्राप्ति के लिए हमारे मन में जब दृढ़ता नहीं रहती, तभी नियम में हम स्थिर नहीं हो पाते. मन में तड़प हो, छटपटाहट हो तभी उसका स्मरण सदा रहेगा. मोह-ममता मिटाने के लिए ईश्वर हमारे जीवन में कई परिस्थितयों का निर्माण करते हैं. हमें अपने मन की समता बनाये रखनी है, हर सुख-दुःख को समर्पित करना है. तीनों तापों से बचने का यही उपाय है. जो अपने भीतर संतुष्ट रहता है, उसकी समस्त कामनाओं का स्वतः ही परिमार्जन हो जाता है अर्थात अनावश्यक जीवन से झर जाता है. वह इस जीवन में फिर सहज हुआ प्रारब्ध के अनुसार अपना समय बिताता है. उसकी दौड़ समाप्त हो जाती है, कुछ करने व पाने की आशा उसे अब नचाती नहीं. वह जीते जी मुक्त हो जाता है. उसका न कोई शत्रु है न कोई मित्र, सारे द्वन्द्वों से पार हुआ वह अपने आप में अर्थात आत्मा में ही तुष्ट रहता है. जगत उसके लिए स्वप्न वत् अथवा क्रीडांगन हो जाता है. वह जीवभाव से मुक्त होकर आत्मभाव में निमग्न रहता है. 

4 comments:

  1. काफी उम्दा रचना....बधाई...
    नयी रचना
    "अनसुलझी पहेली"
    आभार

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  2. सुन्दर स्वस्थ विचार.
    आभार

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  3. ईश्वर की तड़प मुक्ति का एहसास है ...

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  4. राहुल जी, राकेश जी तथा दिगम्बर जी आप सभी का स्वागत व आभार !

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