Monday, August 12, 2013

व्यर्थ न जाये इक पल भी

दिसम्बर २००४ 
मस्त रहेंगे यदि स्वस्थ रहेंगे, स्वस्थ रहेंगे यदि चुस्त रहेंगे, चुस्त रहेंगे यदि व्यस्त रहेंगे....तो सर्वप्रथम हमें व्यस्त रहना है, जो भी कार्य हमें मिला है उसे पूरा मन लगाकर करना ही व्यस्तता है. एक क्षण भी यदि हम खाली न बैठें तो रोग हमारे पास फटक भी नहीं सकता. लेकिन वह व्यस्तता आनंदपूर्ण होनी चाहिए. यदि कार्य हम विवशता वश करते हैं तो वह रोग को बुलाना ही है. मन यदि आनन्द से पूर्ण है तो सारे काम सहज ही होते हैं. करुणा, मुदिता, उपेक्षा और मैत्री ये चारों यदि मन में हैं तो आनन्द कहीं जा ही नहीं सकता. वैसे भी वह कहीं जाता नहीं है बस किसी न किसी विकार से ढक जाता है.


4 comments:


  1. जागरण पैदा करती पोस्ट व्यस्त रह बीमारी से बच। तज। याद में रह उसकी हर काम कर। मुदित मन से विश्राम कर।

    व्यर्थ

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  2. आपकी यह रचना कल मंगलवार (12-08-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

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  3. मस्त रहेंगे यदि स्वस्थ रहेंगे, स्वस्थ रहेंगे यदि चुस्त रहेंगे, चुस्त रहेंगे यदि व्यस्त रहेंगे...

    बहुत सही कहा आपने ,,,

    RECENT POST : जिन्दगी.

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  4. वीरू भाई, अरुन जी व धीरेन्द्र जी आप सभी का स्वागत व आभार !

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