Wednesday, May 8, 2013

दीप जला है घट घट सुंदर


सितम्बर २००४ 
इस जगत में हम चाहे कितनी ही उपलब्धियाँ हासिल कर लें, यदि भीतर तृष्णा बनी हुई है तो वे सभी व्यर्थ हैं, हम यदि धन होने पर भी अभाव का अनुभव करें, शिक्षित होकर भी अज्ञान का प्रदर्शन करें, आस्तिक होके भी दुखी हों, तो हमारा धन, विद्वता, तथा धर्म सत्य नहीं हैं, कहीं न कहीं कोई भूल हो रही है. भीतर एक पूर्ण तृप्ति का अहसास ही एक मात्र ऐसी उपलब्धि है, जो पाने योग्य है. जीवन एक अनुपम उपहार है, जिसका हर क्षण आनंद का स्रोत बन सकता है. वह परम अस्तित्त्व, हमारा अपना आप अंतर में दीप जलाकर प्रतीक्षा रत है, हम बाहर से निरत होकर जैसे ही भीतर झांकते हैं, वह हमें बाहें फैलाये खड़े दीखता है. जिस क्षण उससे परिचय होता है, तत्क्षण एक अनोखी शांति बरसने लगती है. 

2 comments:


  1. कोई कोई ही परिचित है इस आत्म सुख से .भौतिक उपादान और भी अतृप्त करते हैं .एक धनवान व्यक्ति एक ज्योतिष के पास गया बोला मेरा भविष्य क्या है मेरा कल कैसा होगा मेरी संततियों का क्या होगा .ज्योतिषी बोला राजन तुम्हारे पास इतना धन जमा हो गया है ,तुम्हारी १ २ पुश्त (पीढियां )आराम से खा सकती हैं .धनवान व्यक्ति यह सोच चिंता में पड़ गया हाय मेरी तेरहवीं पीढ़ी का क्या होगा .आज हमारी यही स्थिति है .

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  2. कोई कोई ही परिचित है इस आत्म सुख से .भौतिक उपादान और भी अतृप्त करते हैं .एक धनवान व्यक्ति एक ज्योतिष के पास गया बोला मेरा भविष्य क्या है मेरा कल कैसा होगा मेरी संततियों का क्या होगा .ज्योतिषी बोला राजन तुम्हारे पास इतना धन जमा हो गया है ,तुम्हारी १ २ पुश्त (पीढियां )आराम से खा सकती हैं .धनवान व्यक्ति यह सोच चिंता में पड़ गया हाय मेरी तेरहवीं पीढ़ी का क्या होगा .आज हमारी यही स्थिति है .

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