Thursday, August 16, 2012

चल मन गंगा जमुना तीर


जुलाई २००३ 
हमारे भीतर ही गंगा है और सागर भी, मानसतीर्थ में यदि प्रवेश हो गया तो ही बाहरी तीर्थों पर जाना सफल हुआ मानना चाहिए, तीर्थ दर्शन, व्रत आदि से अंत करण की शुद्धि होती है, तभी भीतर ज्ञान टिकता है. यही ज्ञान हमें परमसत्ता से मिलाता है, जो हमारे भीतर है. जब मन नहीं रहता अर्थात राग-द्वेष नहीं रहते, तो बुद्धि शुद्ध हो जाती है, अहंकार खो जाता है तब वह परमात्मा हमें अपनी आत्मा के दर्पण में नजर आता है. हमें अपने वास्तविक स्वरूप का अनुभव होता है. यह जगत एक नाटकशाला की तरह लगता है अथवा तो स्वप्न की तरह. जो जितनी जल्दी इस परमसुख का अनुभव कर लेता है वह उतनी ही शीघ्रता से समाज के लिये हितकारी बन सकता है, उसे तब सारे अपने ही लगते हैं. शुद्ध प्रेम का वास उसके हृदय में होता है ऐसा प्रेम जो कभी घटता बढ़ता नहीं, वह प्रेम भिक्षुक नहीं दाता होता है.

6 comments:

  1. राह पर चल निकले हैं मुश्किलें तो होंगी राह में ।

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  2. चलो मन गंगा ज़मुना तीर ,गंगा जमुना निर्मल पानी शीतल होत शरीर .......मानसी गंगा मन ,बुद्धि संस्कार (आत्मन )को शीतलता प्रदान करती है .बढ़िया पोस्ट

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  3. हमारे भीतर ही गंगा है और सागर भी, मानसतीर्थ में यदि प्रवेश हो गया तो ही बाहरी तीर्थों पर जाना सफल हुआ मानना चाहिए, तीर्थ दर्शन, व्रत आदि से अंत करण की शुद्धि होती है,

    RECENT POST...: शहीदों की याद में,,

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  4. तीर्थ दर्शन, व्रत आदि से अंत करण की शुद्धि होती है, तभी भीतर ज्ञान टिकता है.

    ANTARTAM KA GYAN

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  5. वह प्रेम भिक्षुक नहीं दाता होता है.
    बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ...

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  6. इमरान, वीरू भाई, धीरेन्द्रजी, रमाकांत जी व सदा जी आप सभी का ज्ञान गंगा में गोते लगाने के लिये स्वागत व आभार!

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