Tuesday, December 27, 2011

साधना पथ


अगस्त २००२ 
मन को नवीनता चाहिए सो ईश्वर की भक्ति के लिये जप, तप, ध्यान, सुमिरन, कीर्तन, स्वाध्याय  आदि अनेक उपाय शास्त्रों में सुझाये हैं. हर तरह की मानसिकता वाला व्यक्ति इस मार्ग पर चल सकता है, लेकिन सभी में उसे जानने की कामना तो होनी ही चाहिए. यह कामना सत्संग सुनने से भी उत्पन्न हो सकती है, अथवा शास्त्रों के अध्ययन से भी. यह भी आवश्यक नहीं कि सभी उसके बारे में एक जैसी अवधारणा रखें. कोई परम शक्ति, अन्य परम ज्ञान या परम आनंद के रूप में उसकी कल्पना करता है. उसे जानना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि उस एक को जान कर सब कुछ जाना जा सकता है. वरना तो ज्ञान की इतनी शाखाएँ हैं और कई तो एक दूसरे का विरोध करती हुई प्रतीत होती हैं. यहाँ कुछ भी चिरस्थायी नहीं है. पल-पल हम मृत्यु की ओर बढ़ रहे हैं, न जाने कितने लोग हमारे देखते-देखते काल के गाल में समा गए, उनका कोई निशान भी नहीं बचता. वे एक से एक बड़े ज्ञानी थे, वैज्ञानिक थे, कलाकार थे, सामान्य जन थे. मृत्यु से पूर्व यदि इस रहस्य से पर्दा उठे कि हम यहाँ क्यों हैं? यह संसार क्या है? हमें बार-बार इस सुख-दुःख के झूले में क्यों झूलना पड़ता है? आदि, संभवतः इन सबका ज्ञान तो बहुत बाद में होगा किन्तु इस पथ पर चलते समय भी अनेक अनुभव होते है. चित्त को शुद्ध करने का प्रयास करते-करते समता भाव सधता है. प्रेम का शुद्ध स्वरूप निखरता है, ऐसा प्रेम जो स्वार्थी नहीं है, कल्याणकारी है, जो देना ही जानता है. मन की शांति भी तो एक अनुपम उपहार है.  

5 comments:

  1. ै. मन की शांति भी तो एक अनुपम उपहार है.
    सुन्दर वृत्तांत .

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  2. मन की शांति ही आरम्भ है

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  3. मन की शांति भी तो एक अनुपम उपहार है.

    शायद सबसे अनुपम उपहार है ...क्योंकि इसके बिना आगे कैसे बढ़ेंगे !

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  4. साधना पथ को पढ़ कर काफी कुछ सिखने को मिला ,आप का लिखने का तरीका बहत ही उम्दा है.....आप के ब्लॉग पर पहली बार आना हुआ...अच्छा लगा यहाँ आकर ...:)

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