मार्च २००१
मानव अपनी प्रकृति का दास होता है. कृष्ण ने सच ही कहा है कि गुण ही गुणों को वर्तते हैं. हम अपनी प्रकृति के अनुसार कर्मों को करते हैं फिर कर्म बंधन में पड़ जाते हैं. यही कर्म हमारे अगले जन्म का कारण बनते हैं और यह क्रम चलता रहता है. कभी तो इस पर रोक लगानी होगी, गुणातीत होना होगा. ईश्वर की शरणागति के अतिरिक्त कोई उपाय नहीं. वही हमें अभय प्रदान करते हैं. पूतना, अघासुर, बकासुर, तृणासुर, शकटासुर और नरकासुर के रूप में स्थित काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मत्सर का वह खेल-खेल में नाश कर देते हैं. कितनी अद्भुत है कृष्णलीला !
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