Tuesday, August 16, 2011

साधना


सितम्बर २००१ 

साधक का एकमात्र लक्ष्य उस परम ब्रह्म को प्रसन्न करना है. आसक्ति व विरक्ति दोनों से विमुक्त वह जीवन को सहज रूप में जीता है. वह यह जानता है कि परमपिता हर क्षण उसके साथ है, उसका अभिन्न अंग है, अतः पग-पग पर वह सचेत रहता है ताकि उसके मधुर प्रेम को प्राप्त करता रहे. संसार हमें लोभी, कपटी व अहंकारी बनाता है और ईश्वर हमें उदार बनाता है ! शास्त्रों के अर्थ वही खोलता है, हमारी कुशल-क्षेम का भार अपने पर लेकर वह हमें मुक्त कर देता है.

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