Wednesday, June 15, 2011

वर्तमान का सुख


मई २०००

जीवन की इस यात्रा में हमें थोड़ा सा सम्भल-सम्भल के चलना है, मंजिल तभी मिलेगी. व्यर्थ ही भूत की स्मृतियों तथा भविष्य की कल्पनाओं में भ्रमित रहकर कहीं वर्तमान को कटु न बना लें. ईश्वर प्रेम के रस का अनुभव यदि एक बार भी हो जाये तो जगत में दोष नजर ही नहीं आता ऐसा संत कहते हैं. अपने कर्तव्यों का निर्वाह करते रहें तो मन स्वयंमेव ही प्रफ्फुलित रहता है. बेचैनी का जन्म तब होता है जब हम अपने मार्ग से हटते हैं, जैसे बीमारी का आगमन तभी होता है जब हम स्वास्थ्य के नियमों का पालन नहीं करते.



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