Wednesday, May 25, 2011

चैतन्य


मार्च २००० 
“अपने मूल स्वरूप को पहचान कर अंतहीन सुख के साम्राज्य को पा सकने की हममें क्षमता है. संसार बदल रहा है, नश्वर है, लेकिन अपना आप जो चेतन है, नित्य है, अपरिवर्तनशील है, उसी चैतन्य को पाना ही जीवन का ध्येय है”. ये बातें हमें हर जगह सुनने को नहीं मिलतीं लेकिन जीवन को सार्थक ढंग से जीने के लिये, अपने कर्तव्यों का बोध जागृत रखने के लिये, हृदय में सहनशीलता, त्याग व आत्म विसर्जन की उद्दात भावनाओं के स्फुरण के लिये इनको सुनते रहना अति आवश्यक है. ये जहाँ मन को उहापोह से मुक्त रखती हैं, वहीं उसे एकाग्र रखने में भी सहायक हैं.
हमारे पूर्वजों ने जीवन के उद्देश्य, जीने के तरीके और आत्मिक उन्नति के द्वार योग के रूप में खोल दिये हैं. अब यह हम पर निर्भर करता है कि पंक में सने रहें, सांसारिक मोह माया और उलझनों में मानसिक ऊर्जा को व्यर्थ नष्ट कर दें अथवा मुक्त होकर आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ें, संत जन कहते हैं कि ज्ञानीजनों के अनुभव को अपना अनुभव बना लेने पर ही बंधन कट सकते हैं, तब सुख-दुःख, मान-अपमान, यश-अपयश सभी स्वप्नवत प्रतीत होते हैं. कंस की सेविका जब कृष्ण की सेविका हो जायेगी तभी उसका उद्धार होगा.   

1 comment:

  1. अब यह हम पर निर्भर करता है कि पंक में सने रहें, सांसारिक मोह माया और उलझनों में मानसिक ऊर्जा को व्यर्थ नष्ट कर दें अथवा मुक्त होकर आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ें

    -सत्य वचन!!

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